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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2022
पृष्ठ :180
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2645
आईएसबीएन :0

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बीए सेमेस्टर-3 हिन्दी गद्य : सरल प्रश्नोत्तर

आलोचना

प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।

अथवा
हिन्दी आलोचना के विकास पर संक्षिप्त निबन्ध लिखिए

उत्तर -

हिन्दी आलोचना का उद्भव और विकास

समालोचना शब्द सम् + आ उपसर्ग लोच् (जिसे पाणिनि ने अपनी पारिभाषिक शब्दावली में लोच लिखा है) से बना है। सम् + आ + लोच् + अन् + आ = समालोचना – सम् का अर्थ है सम्यक् रूप से आ अर्थ का है समन्वात् अर्थात् चारों ओर कृति का अवलोकन करना है। अवलोकन से अभिप्राय कृति की व्याख्या और उसका मूल्याँकन है। किसी कवि या लेखक की कृति की व्याख्या और उसका मूल्याँकन है। किसी कवि या लेखक की कृति को देखने अथवा परखने (परीक्षा का अर्थ भी परितः + ईक्षा चारो ओर से देखना है) वाला समालोचक कहलाता है। समालोचना के लिए एक अन्य प्रयोग समीक्षा भी प्रचलित है, और इस आधार पर समालोचक को समीक्षक भी कहा जाता है। समीक्षा का अर्थ भी कृति को सम्यक् रूप से (सम + ईक्षा) देखना अर्थात् परखना है। समालोचना के स्थान पर आलोचना शब्द का प्रयोग भी किया जाता है।

साहित्य के अन्यान्य अंगों की भाँति समालोचना का सूत्रपाद भी भारतेन्दु युग में हुआ। समालोचना का अर्थ है 'सद्-असद् का विवेचन। सामान्य जन-समाज भी किसी वस्तु के विषय में अपनी रुचि अरुचि प्रकट करता है। प्राचीनकाल में समालोचना आज जैसी नहीं मिलती। वह सूत्रबद्ध रूप में मिलती है जैसे -

सूर सूर तुलसी शशी, उडुगन केशवदास,
अब के कवि खद्योत सम, जहँ तहँ करें प्रकास।

इसमें सूर, तुलसी और केशव के साथ-साथ अप्रत्यक्ष रूप से अन्य कवियों की आलोचना भी सम्मिलित हैं। इसी प्रकार और कवि गढ़िया नंददास जड़िया। में नन्ददास के कलापक्ष की प्रशंसा स्पष्ट रुप से व्यक्ति है। तुलसी गंग दुवौ भए सुकविनु के सरदार भी तुलसी तथा गंग की कवित्व शक्ति की उचित आलोचना है। आलोचना प्रवृत्ति मानव की अत्यन्त प्रमुख एवं स्वाभाविक प्रवृत्ति है, कुछ वस्तुओं से मनुष्य घृणा करता है, कुछ का वह प्रशंसक होता है। आलोचना की प्रवृत्ति का यही मूल है।

हिन्दी आधुनिक समालोचना के जन्मदाता पं. बालकृष्ण भट्ट तथा बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमधन माने जाते हैं। सर्वप्रथम पं. बालकृष्ण भट्ट ने लाला श्रीनिवास दास के संयोगिता स्वयंवर की सच्ची समालोचना की इससे पूर्व आलोचना का अर्थ लिया जाता था केवल प्रशंसा। पं. बालकृष्ण भट्ट ने ही उपर्युक्त नाटक के दोषों पर भी प्रकाश डाला।

वैसे तो आलोचना का कार्य भारतेन्दु युग से ही प्रारम्भ हो गया था, किन्तु महावीर प्रसाद द्विवेदी ने उसे बहुत उत्कर्ष पर पहुँचा दिया। पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचनाएँ अधिकतर निर्णयात्मक होती थीं। महावीर प्रसाद द्विवेदी 'सरस्वती' के सम्पादक थे, वे उसी में पुस्तकों की तथा हिन्दी संस्कृत कवियों की आलोचना किया करते थे। द्विवेदी जी द्वारा पुस्तक समालोचना का आरम्भ हुआ जो अब तक प्रचलित है। आलोचना के इतिहास में महावीर प्रसाद द्विवेदी का नाम अविस्मरणीय रहेगा। शायद ही ऐसा कोई समर्थ समालोचक किसी साहित्य में हुआ होगा जो काव्यधारा को अपने मनोवांछित रूप में परिवर्तित कर ले। महावीर प्रसाद द्विवेदी की आलोचना के भय से श्रृंगार सम्बन्धी काव्य का सर्जन तो प्रायः बन्द ही हो गया चाहे महावीर प्रसाद द्विवेदी से अधिक साहित्यिक मूल्य रखने वाली आलोचनाओं के लेखक हिन्दी में हों, परन्तु इसमें तो कोई सन्देह नहीं कि पं. महावीर प्रसाद द्विवेदी का जितना ऐतिहासिक महत्व है उतना अन्य किसी समालोचक का नहीं। हिन्दी के सर्वश्रेष्ठ समालोचक पं. रामचन्द्र शुक्ल भी उस काव्यधारा को नहीं रोक सके, जिसके वे विरोधी, परन्तु द्विवेदी जी को यह गौरव प्राप्त है। इसके अतिरिक्त एक और महान कार्य जो द्विवेदी जी ने किया वह है भाषा का परिष्कार। उनसे पहले भाषा बड़ी अव्यवस्थित थी, वह व्याकरण सम्मत नहीं होती थी। द्विवेदी जी की कटु आलोचना ने लेखकों को भाषा के प्रति सचेत किया और इस प्रकार भाषा का बड़ा उपकार हुआ।

इसके पश्चात् मिश्र बन्धु आलोचना के क्षेत्र में आये और उन्होनें हिन्दी नवरत्न' नामक एक बड़ा आलोचनात्मक ग्रन्थ लिखा, इसमें उन्होनें कवियों का श्रेणी विभाजन किया और प्रथम द्वितीय के क्रम में रखा। मिश्र बन्धुओं ने देव को बिहारी से श्रेष्ठ कवि घोषित किया और इस प्रकार की निर्णयात्मक आलोचना ने ही साहित्यिक विवाद को जन्म दिया। पं. पदम सिंह शर्मा साहित्य क्षेत्र में आये और बिहारी पर एक आलोचनात्मक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होनें देव की तुलना में श्रेष्ठतर बताया। इस प्रकार हिन्दी में तुलनात्मक आलोचना का आरम्भ भी यहीं से मानना चाहिए। पं. पद्म सिंह शर्मा ने विभिन्न भाषा के अनेक कवियों के उद्धरण देकर बिहारी से उनकी तुलना कर यह प्रमाणित किया कि बिहारी उनमें सर्वश्रेष्ठ है।

इनमें तो कोई संदेह नहीं कि पं. पद्म सिंह शर्मा ने बिहारी के साथ पर्याप्त पक्षपात किया है, फिर भी उनकी आलोचना का साहित्यिक मूल्य है।

पं. पद्मसिंह शर्मा की पुस्तक के उत्तर स्वरूप पं. कृष्णबिहारी मिश्र अपने 'देव' और 'बिहारी' पुस्तक लेकर आलोचना क्षेत्र में आये। इस पुस्तक में लेखक ने अत्यन्त संयत तथा साहित्यिक भाषा में देव का पक्ष प्रतिपादित किया है। मिश्र जी के तर्क उचित तथा साहित्यिक है।

पं. पद्मसिंह शर्मा की पुस्तक की भाँति 'वाह वाह ! शाबाश आदि की झड़ी इसमें नहीं है। मिश्र जी ने अपने तर्क का आधार साहित्यिक तत्वों को ही बनाया है। आलोचना की दृष्टि से देखा जाये तो पं. कृष्ण बिहारी मिश्र की यह पुस्तक मिश्र बंधुओं की पुस्तक से भी उच्चकोटि की ठहरती है।

फिर भी तारतम्य यहीं समाप्त नहीं हुआ। लाला भगवानदीन ने इस पुस्तक के उतर में 'बिहारी और देव' नामक आलोचनात्मक पुस्तक लिखी और उनमें उन्होनें बिहारी को महानतम कवि सिद्ध करने का प्रयास किया। ऐसी आलोचनाओं में पक्षपात तो रहता ही था, इसके अतिरिक्त अपनी विद्धता प्रदर्शन की भावना भी रहती थी। इस प्रकार की आलोचना के कोई निश्चित मान पहले से नहीं थे, जिनके आधार पर इस प्रकार की आलोचना की जाती केवल व्यक्तिगत रुचि के आधार पर कवियों को 'बडा-छोटा' बनाने का यह साहित्यिक झगड़ा था।

आलोचना तो अपने पूर्ण उत्कर्ष को पं. रामचन्द्र शुक्ल के हाथों पहुँची। शुक्ल जी ने तुलसी, सूर तथा जायसी पर विस्तृत समीक्षाएँ लिखीं। इससे पूर्व कवियों पर इतनी विस्तृत आलोचना नहीं की गयी थीं। अपनी आलोचना के बल पर ही पं. रामचन्द्र शुक्ल ने जायसी जैसे अप्रसिद्ध कवि को प्रकाश में लाकर ऊपर उठा दिया और तुलसी को न केवल हिन्दी का ही, अपितु विश्व के सर्वश्रेष्ठ कवि के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय प्राप्त किया। उन्होनें अपनी व्यक्तिगत धारणाओं और मान्यताओं के माध्यम से साहित्य को देखा इसमें सन्देह नहीं कि शुक्ल जी हिन्दी के सर्व महान आलोचक रहे हैं।

डॉ. श्यामसुन्दर का नाम भी आलोचना क्षेत्र में शुक्ल जी के साथ ही आता है। इन्होनें सैद्धान्तिक आलोचना की एक पुस्तक 'साहित्यलोचन लक्षण ग्रन्थ के रूप में लिखी। इसके अतिरिक्त कबीर और सूर तुलसी पर भी इन्होनें विस्तृत समीक्षाएँ लिखी। डॉ. श्यामसुन्दर दास का कितनी ही बातों में आचार्य शुक्ल से मतभेद, यथा साधरणीकरण के प्रश्न पर डॉ. श्यामसुन्दर दास की विवेचन पद्धति सरल और स्पष्ट होती है। आचार्य शुक्ल तथा डॉ. श्यामसुन्दरदास दोनों ही आलोचना के भारतीय मानों में समर्थक हैं।

पं. अयोध्यासिंह उपाध्याय ने भी कबीर के सम्बन्ध में एक विस्तृत आलोचनात्मक समीक्षा लिखी। इसके पश्चात् कई नवीन आलोचक क्षेत्र में आये और कई नवीन पुस्तकें भी लिखी गयीं। अंग्रेजी साहित्य के गम्भीर अनुशीलन के कारण आज के अधिकांश समालोचक उससे प्रभावित हैं। आचार्य शुक्ल तथा डॉ. श्यामसुन्दर दास ने भी अंग्रेजी का अध्ययन किया और प्राचीन विषयों को नवीन ढंग से रखा। 'छायावाद' युग आने के साथ-साथ आलोचना साहित्य अबाध गति से बढ़ता चला जा रहा है। आज मुख्य रूप से तीन प्रकार के समालोचक हमें दिखाई देते हैं-

(1) प्राचीनवादी अर्थात वे आलोचक जो आलोचना के प्राचीन भारतीय मानों में आस्था रखते हैं, किन्तु कुछ आधुनिक तत्वों का समावेश भी कर लेते हैं। इनमें बाबू गुलाबराय, रामदहिन मिश्र तथा विश्वनाथ प्रसाद आदि प्रमुख हैं।

बाबू गुलाबराय ने 'सिद्धान्त और अध्ययन 'काव्य के रूप आदि आलोचना शास्त्र की पुस्तकें लिखी हैं, इनमें गुलाबराय जी ने आधुनिक और प्राचीन भारतीय सिद्धान्तों का समन्वय का प्रयत्न किया है।

पं. रामदहिन मिश्र ने लक्षण ग्रन्थ के रूप में 'काव्य-दर्पण' की रचना की है। इसमें उन्होनें प्राचीन भारतीय सिद्धान्तों का औचित्य प्रमाणित किया है। इस वर्ग के लोग आज के छायावादी साहित्य के घोर शत्रु रहे। ये उसे निराली अनुभूतियों से पूर्ण जीवन से दूर केवल काल्पनिक काव्य ही मानते हैं। छायावादी साहित्य की भाषा की लाक्षणिकता की प्रशंसा मिश्र जी ने अवश्य मुक्तकंठ से की और उन्होनें अपने हिन्दी साहित्य के इतिहास के पन्त, प्रसाद, निराला आदि पर विस्तार से लिखा।

 (2) दूसरे प्रकार के समालोचक वे हैं जो छायावाद के प्रशंसक और प्रबल समर्थक हैं- इनमें नन्द दुलारे बाजपेयी, डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी, शान्ति प्रिय द्विवेदी, डॉ. नगेन्द्र, गंगा प्रसाद पाण्डेय तथा विश्वम्भर 'मानव' प्रमुख हैं। प्रसिद्ध छायावादी कवि पन्त ने तो अपनी विभिन्न भूमिकाओं में आलोचनात्मक समीक्षा के द्वारा छायावाद का महत्व प्रतिपादित किया है। एक विचित्र बात यह रही है कि इस युग के प्रधान कवि प्रसाद पन्त, निराला, महादेवी प्रमुख आलोचक भी रहे। इन सब ने छायावादी साहित्य का महत्व प्रतिपादित किया।

(3) तीसरे प्रकार के आलोचक हैं मार्क्सवादी आलोचक, जिनकी आलोचना का आधार मार्क्सवादी सिद्धान्त है और अर्थ मार्क्सवादी सिद्धान्त का मूल है। इस दिशा के प्रमुख आलोचक हैं - डॉ. रामविलास शर्मा, प्रो. प्रकाश चन्द्र गुप्त, शिवदान सिंह चौहान आदि। डॉ. रामविलास शर्मा ने निराला पर एक आलोचनात्मक पुस्तक लिखी, पुस्तक निराला जी के घनिष्ठ सम्पर्क में रहकर लिखी गई है जो लेखक निराला जी के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं। अतः आलोचना के स्वर (Tone) प्रशंसात्मक हैं, इसके अतिरिक्त डॉ. शर्मा ने साहित्यिकवाद, समस्याओं आदि पर आलोचनात्मक निबन्ध लिखे। उन्होनें पन्त जी की कडी आलोचना की।

वर्तमान आलोचकों में डॉ. विश्वनाथ तिवारी, डॉ. परमानन्द श्रीवास्तव, डॉ. मैनेजर पाण्डेय, डॉ. प्रभाकर श्रोत्रिय, डॉ. रामस्वरूप चतुर्वेदी, डॉ. बच्चन सिंह, डॉ. गणपति चन्द्र गुप्त, डॉ. नामवर सिंह आदि प्रमुख हैं, जिन्होनें हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में महत्वपूर्ण कार्य किया है।

आज आलोचना की धारा बहुमुखी हो रही है, किन्तु इतना कहना ही होगा की शुक्ल जी जैसे समर्थ आलोचकों का अभाव है। फिर भी आलोचना साहित्य प्रगति के पथ पर है। उनका भविष्य उज्जवल है और यही आशा है कि हिन्दी का आलोचना - साहित्य सम्पन्न होकर रहेगा।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- आदिकाल के हिन्दी गद्य साहित्य का परिचय दीजिए।
  2. प्रश्न- हिन्दी की विधाओं का उल्लेख करते हुए सभी विधाओं पर संक्षिप्त रूप से प्रकाश डालिए।
  3. प्रश्न- हिन्दी नाटक के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  4. प्रश्न- कहानी साहित्य के उद्भव एवं विकास को स्पष्ट कीजिए।
  5. प्रश्न- हिन्दी निबन्ध के विकास पर विकास यात्रा पर प्रकाश डालिए।
  6. प्रश्न- स्वातंत्र्योत्तर हिन्दी आलोचना पर प्रकाश डालिए।
  7. प्रश्न- 'आत्मकथा' की चार विशेषतायें लिखिये।
  8. प्रश्न- लघु कथा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
  9. प्रश्न- हिन्दी गद्य की पाँच नवीन विधाओं के नाम लिखकर उनका अति संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  10. प्रश्न- आख्यायिका एवं कथा पर टिप्पणी लिखिये।
  11. प्रश्न- सम्पादकीय लेखन का वर्णन कीजिए।
  12. प्रश्न- ब्लॉग का अर्थ बताइये।
  13. प्रश्न- रेडियो रूपक एवं पटकथा लेखन पर टिप्पणी लिखिये।
  14. प्रश्न- हिन्दी कहानी के स्वरूप एवं विकास पर प्रकाश डालिये।
  15. प्रश्न- प्रेमचंद पूर्व हिन्दी कहानी की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
  16. प्रश्न- नई कहानी आन्दोलन का वर्णन कीजिये।
  17. प्रश्न- हिन्दी उपन्यास के उद्भव एवं विकास पर एक संक्षिप्त निबन्ध लिखिए।
  18. प्रश्न- उपन्यास और कहानी में क्या अन्तर है ? स्पष्ट कीजिए ?
  19. प्रश्न- हिन्दी एकांकी के विकास में रामकुमार वर्मा के योगदान पर संक्षिप्त विचार प्रस्तुत कीजिए।
  20. प्रश्न- हिन्दी एकांकी का विकास बताते हुए हिन्दी के प्रमुख एकांकीकारों का परिचय दीजिए।
  21. प्रश्न- सिद्ध कीजिए कि डा. रामकुमार वर्मा आधुनिक एकांकी के जन्मदाता हैं।
  22. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के उद्भव और विकास पर प्रकाश डालिए।
  23. प्रश्न- हिन्दी आलोचना के क्षेत्र में आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का योगदान बताइये।
  24. प्रश्न- निबन्ध साहित्य पर एक निबन्ध लिखिए।
  25. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के आधार पर जीवनी और संस्मरण का अन्तर स्पष्ट कीजिए, साथ ही उनकी मूलभूत विशेषताओं की भी विवेचना कीजिए।
  26. प्रश्न- 'रिपोर्ताज' का आशय स्पष्ट कीजिए।
  27. प्रश्न- आत्मकथा और जीवनी में अन्तर बताइये।
  28. प्रश्न- हिन्दी की हास्य-व्यंग्य विधा से आप क्या समझते हैं ? इसके विकास का विवेचन कीजिए।
  29. प्रश्न- कहानी के उद्भव और विकास पर क्रमिक प्रकाश डालिए।
  30. प्रश्न- सचेतन कहानी आंदोलन पर प्रकाश डालिए।
  31. प्रश्न- जनवादी कहानी आंदोलन के बारे में आप क्या जानते हैं ?
  32. प्रश्न- समांतर कहानी आंदोलन के मुख्य आग्रह क्या थे ?
  33. प्रश्न- हिन्दी डायरी लेखन पर प्रकाश डालिए।
  34. प्रश्न- यात्रा सहित्य की विशेषतायें बताइये।
  35. अध्याय - 3 : झाँसी की रानी - वृन्दावनलाल वर्मा (व्याख्या भाग )
  36. प्रश्न- उपन्यासकार वृन्दावनलाल वर्मा के जीवन वृत्त एवं कृतित्व पर प्रकाश डालिए।
  37. प्रश्न- झाँसी की रानी उपन्यास में वर्मा जी ने सामाजिक चेतना को जगाने का पूरा प्रयास किया है। इस कथन को समझाइये।
  38. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास में रानी लक्ष्मीबाई के चरित्र पर प्रकाश डालिये।
  39. प्रश्न- झाँसी की रानी के सन्दर्भ में मुख्य पुरुष पात्रों की चारित्रिक विशेषताएँ बताइये।
  40. प्रश्न- 'झाँसी की रानी' उपन्यास के पात्र खुदाबख्श और गुलाम गौस खाँ के चरित्र की तुलना करते हुए बताईये कि आपको इन दोनों पात्रों में से किसने अधिक प्रभावित किया और क्यों?
  41. प्रश्न- पेशवा बाजीराव द्वितीय का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  42. अध्याय - 4 : पंच परमेश्वर - प्रेमचन्द (व्याख्या भाग)
  43. प्रश्न- 'पंच परमेश्वर' कहानी का सारांश लिखिए।
  44. प्रश्न- जुम्मन शेख और अलगू चौधरी की शिक्षा, योग्यता और मान-सम्मान की तुलना कीजिए।
  45. प्रश्न- “अपने उत्तरदायित्व का ज्ञान बहुधा हमारे संकुचित व्यवहारों का सुधारक होता है।" इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
  46. अध्याय - 5 : पाजेब - जैनेन्द्र (व्याख्या भाग)
  47. प्रश्न- श्री जैनेन्द्र जैन द्वारा रचित कहानी 'पाजेब' का सारांश अपने शब्दों में लिखिये।
  48. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी के उद्देश्य को स्पष्ट कीजिए।
  49. प्रश्न- 'पाजेब' कहानी की भाषा एवं शैली की विवेचना कीजिए।
  50. अध्याय - 6 : गैंग्रीन - अज्ञेय (व्याख्या भाग)
  51. प्रश्न- कहानी कला के तत्त्वों के आधार पर अज्ञेय द्वारा रचित 'गैंग्रीन' कहानी का विवेचन कीजिए।
  52. प्रश्न- कहानी 'गैंग्रीन' में अज्ञेय जी मालती की घुटन को किस प्रकार चित्रित करते हैं?
  53. प्रश्न- अज्ञेय द्वारा रचित कहानी 'गैंग्रीन' की भाषा पर प्रकाश डालिए।
  54. अध्याय - 7 : परदा - यशपाल (व्याख्या भाग)
  55. प्रश्न- कहानी कला की दृष्टि से 'परदा' कहानी की समीक्षा कीजिए।
  56. प्रश्न- 'परदा' कहानी का खान किस वर्ग विशेष का प्रतिनिधित्व करता है, तर्क सहित इस कथन की पुष्टि कीजिये।
  57. प्रश्न- यशपाल जी के व्यक्तित्व और कृतित्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
  58. अध्याय - 8 : तीसरी कसम - फणीश्वरनाथ रेणु (व्याख्या भाग)
  59. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु की कहानी कला की समीक्षा कीजिए।
  60. प्रश्न- रेणु की 'तीसरी कसम' कहानी के विशेष अपने मन्तव्य प्रकट कीजिए।
  61. प्रश्न- हीरामन के चरित्र पर प्रकाश डालिए।
  62. प्रश्न- हीराबाई का चरित्र चित्रण कीजिए।
  63. प्रश्न- 'तीसरी कसम' कहानी की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  64. प्रश्न- 'तीसरी कसम' उर्फ मारे गये गुलफाम कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  65. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु का संक्षिप्त जीवन परिचय लिखिए।
  66. प्रश्न- फणीश्वरनाथ रेणु जी के रचनाओं का वर्णन कीजिए।
  67. प्रश्न- हीराबाई को हीरामन का कौन-सा गीत सबसे अच्छा लगता है ?
  68. प्रश्न- हीरामन की चारित्रिक विशेषताएँ बताइए?
  69. अध्याय - 9 : पिता - ज्ञान रंजन (व्याख्या भाग)
  70. प्रश्न- कहानीकार ज्ञान रंजन की कहानी कला पर प्रकाश डालिए।
  71. प्रश्न- कहानी 'पिता' पारिवारिक समस्या प्रधान कहानी है? स्पष्ट कीजिए।
  72. प्रश्न- कहानी 'पिता' में लेखक वातावरण की सृष्टि कैसे करता है?
  73. अध्याय - 10 : ध्रुवस्वामिनी - जयशंकर प्रसाद (व्याख्या भाग)
  74. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक का कथासार अपने शब्दों में व्यक्त कीजिए।
  75. प्रश्न- नाटक के तत्वों के आधार पर ध्रुवस्वामिनी नाटक की समीक्षा कीजिए।
  76. प्रश्न- ध्रुवस्वामिनी नाटक के आधार पर चन्द्रगुप्त के चरित्र की विशेषतायें बताइए।
  77. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी नाटक में इतिहास और कल्पना का सुन्दर सामंजस्य हुआ है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  78. प्रश्न- ऐतिहासिक दृष्टि से ध्रुवस्वामिनी की कथावस्तु पर प्रकाश डालिए।
  79. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' नाटक का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
  80. प्रश्न- 'धुवस्वामिनी' नाटक के अन्तर्द्वन्द्व किस रूप में सामने आया है ?
  81. प्रश्न- क्या ध्रुवस्वामिनी एक प्रसादान्त नाटक है ?
  82. प्रश्न- 'ध्रुवस्वामिनी' में प्रयुक्त किसी 'गीत' पर अपने विचार प्रकट कीजिए।
  83. प्रश्न- प्रसाद के नाटक 'ध्रुवस्वामिनी' की भाषा सम्बन्धी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
  84. अध्याय - 11 : दीपदान - डॉ. राजकुमार वर्मा (व्याख्या भाग)
  85. प्रश्न- " अपने जीवन का दीप मैंने रक्त की धारा पर तैरा दिया है।" 'दीपदान' एकांकी में पन्ना धाय के इस कथन के आधार पर उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  86. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का कथासार लिखिए।
  87. प्रश्न- 'दीपदान' एकांकी का उद्देश्य लिखिए।
  88. प्रश्न- "बनवीर की महत्त्वाकांक्षा ने उसे हत्यारा बनवीर बना दिया। " " दीपदान' एकांकी के आधार पर इस कथन के आलोक में बनवीर का चरित्र-चित्रण कीजिए।
  89. अध्याय - 12 : लक्ष्मी का स्वागत - उपेन्द्रनाथ अश्क (व्याख्या भाग)
  90. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी की कथावस्तु लिखिए।
  91. प्रश्न- प्रस्तुत एकांकी के शीर्षक की उपयुक्तता बताइए।
  92. प्रश्न- 'लक्ष्मी का स्वागत' एकांकी के एकमात्र स्त्री पात्र रौशन की माँ का चरित्रांकन कीजिए।
  93. अध्याय - 13 : भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है - भारतेन्दु हरिश्चन्द्र (व्याख्या भाग)
  94. प्रश्न- भारतवर्षोन्नति कैसे हो सकती है?' निबन्ध का सारांश लिखिए।
  95. प्रश्न- लेखक ने "हमारे हिन्दुस्तानी लोग तो रेल की गाड़ी हैं।" वाक्य क्यों कहा?
  96. प्रश्न- "परदेशी वस्तु और परदेशी भाषा का भरोसा मत रखो।" कथन से क्या तात्पर्य है?
  97. अध्याय - 14 : मित्रता - आचार्य रामचन्द्र शुक्ल (व्याख्या भाग)
  98. प्रश्न- 'मित्रता' पाठ का सारांश लिखिए।
  99. प्रश्न- सच्चे मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
  100. प्रश्न- आचार्य रामचन्द्र शुक्ल की भाषा-शैली पर संक्षिप्त टिप्पणी कीजिए।
  101. अध्याय - 15 : अशोक के फूल - हजारी प्रसाद द्विवेदी (व्याख्या भाग)
  102. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के नाम की सार्थकता पर विचार करते हुए उसका सार लिखिए तथा उसके द्वारा दिये गये सन्देश पर विचार कीजिए।
  103. प्रश्न- आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के निबंध 'अशोक के फूल' के आधार पर उनकी निबन्ध-शैली की समीक्षा कीजिए।
  104. अध्याय - 16 : उत्तरा फाल्गुनी के आसपास - कुबेरनाथ राय (व्याख्या भाग)
  105. प्रश्न- निबन्धकार कुबेरनाथ राय का संक्षिप्त जीवन और साहित्य का परिचय देते हुए साहित्य में स्थान निर्धारित कीजिए।
  106. प्रश्न- कुबेरनाथ राय द्वारा रचित 'उत्तरा फाल्गुनी के आस-पास' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  107. प्रश्न- कुबेरनाथ राय के निबन्धों की भाषा लिखिए।
  108. प्रश्न- उत्तरा फाल्गुनी से लेखक का आशय क्या है?
  109. अध्याय - 17 : तुम चन्दन हम पानी - डॉ. विद्यानिवास मिश्र (व्याख्या भाग)
  110. प्रश्न- विद्यानिवास मिश्र की निबन्ध शैली का विश्लेषण कीजिए।
  111. प्रश्न- "विद्यानिवास मिश्र के निबन्ध उनके स्वच्छ व्यक्तित्व की महत्वपूर्ण अभिव्यक्ति हैं।" उपरोक्त कथन के संदर्भ में अपने विचार प्रकट कीजिए।
  112. प्रश्न- पं. विद्यानिवास मिश्र के निबन्धों में प्रयुक्त भाषा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  113. अध्याय - 18 : रेखाचित्र (गिल्लू) - महादेवी वर्मा (व्याख्या भाग)
  114. प्रश्न- 'गिल्लू' नामक रेखाचित्र का सारांश लिखिए।
  115. प्रश्न- सोनजूही में लगी पीली कली देखकर लेखिका के मन में किन विचारों ने जन्म लिया?
  116. प्रश्न- गिल्लू के जाने के बाद वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
  117. अध्याय - 19 : संस्मरण (तीन बरस का साथी) - रामविलास शर्मा (व्याख्या भाग)
  118. प्रश्न- संस्मरण के तत्त्वों के आधार पर 'तीस बरस का साथी : रामविलास शर्मा' संस्मरण की समीक्षा कीजिए।
  119. प्रश्न- 'तीस बरस का साथी' संस्मरण के आधार पर रामविलास शर्मा की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
  120. अध्याय - 20 : जीवनी अंश (आवारा मसीहा ) - विष्णु प्रभाकर (व्याख्या भाग)
  121. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर की कृति आवारा मसीहा में जनसाधारण की भाषा का प्रयोग किया गया है। इस कथन की समीक्षा कीजिए।
  122. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' अथवा 'पथ के साथी' कृति का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
  123. प्रश्न- विष्णु प्रभाकर के 'आवारा मसीहा' का नायक कौन है ? उसका चरित्र-चित्रण कीजिए।
  124. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में समाज से सम्बन्धित समस्याओं को संक्षेप में लिखिए।
  125. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' में बंगाली समाज का चित्रण किस प्रकार किया गया है ? स्पष्ट कीजिए।
  126. प्रश्न- 'आवारा मसीहा' के रचनाकार का वैशिष्ट्य वर्णित कीजिये।
  127. अध्याय - 21 : रिपोर्ताज (मानुष बने रहो ) - फणीश्वरनाथ 'रेणु' (व्याख्या भाग)
  128. प्रश्न- फणीश्वरनाथ 'रेणु' कृत 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज का सारांश लिखिए।
  129. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में रेणु जी किस समाज की कल्पना करते हैं?
  130. प्रश्न- 'मानुष बने रहो' रिपोर्ताज में लेखक रेणु जी ने 'मानुष बने रहो' की क्या परिभाषा दी है?
  131. अध्याय - 22 : व्यंग्य (भोलाराम का जीव) - हरिशंकर परसाई (व्याख्या भाग)
  132. प्रश्न- प्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई द्वारा रचित व्यंग्य ' भोलाराम का जीव' का सारांश लिखिए।
  133. प्रश्न- 'भोलाराम का जीव' कहानी के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
  134. प्रश्न- हरिशंकर परसाई की रचनाधर्मिता और व्यंग्य के स्वरूप पर प्रकाश डालिए।
  135. अध्याय - 23 : यात्रा वृत्तांत (त्रेनम की ओर) - राहुल सांकृत्यायन (व्याख्या भाग)
  136. प्रश्न- यात्रावृत्त लेखन कला के तत्त्वों के आधार पर 'त्रेनम की ओर' यात्रावृत्त की समीक्षा कीजिए।
  137. प्रश्न- राहुल सांकृत्यायन के यात्रा वृत्तान्तों के महत्व का उल्लेख कीजिए।
  138. अध्याय - 24 : डायरी (एक लेखक की डायरी) - मुक्तिबोध (व्याख्या भाग)
  139. प्रश्न- गजानन माधव मुक्तिबोध द्वारा रचित 'एक साहित्यिक की डायरी' कृति के अंश 'तीसरा क्षण' की समीक्षा कीजिए।
  140. अध्याय - 25 : इण्टरव्यू (मैं इनसे मिला - श्री सूर्यकान्त त्रिपाठी) - पद्म सिंह शर्मा 'कमलेश' (व्याख्या भाग)
  141. प्रश्न- "मैं इनसे मिला" इंटरव्यू का सारांश लिखिए।
  142. प्रश्न- पद्मसिंह शर्मा कमलेश की भाषा-शैली पर प्रकाश डालिए।
  143. अध्याय - 26 : आत्मकथा (जूठन) - ओमप्रकाश वाल्मीकि (व्याख्या भाग)
  144. प्रश्न- ओमप्रकाश वाल्मीकि के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर संक्षेप में प्रकाश डालते हुए 'जूठन' शीर्षक आत्मकथा की समीक्षा कीजिए।
  145. प्रश्न- आत्मकथा 'जूठन' का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
  146. प्रश्न- दलित साहित्य क्या है? ओमप्रकाश वाल्मीकि के साहित्य के परिप्रेक्ष्य में स्पष्ट कीजिए।
  147. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालिए।
  148. प्रश्न- 'जूठन' आत्मकथा की भाषिक-योजना पर प्रकाश डालिए।

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